कभी मैं चली कभी रुक गयी
कभी मैं हवा थी कभी बनके कली खिल गयी
मैं कहीं गुमशुदा थी की एक "फूलों की हसी मुझे मिल गयी"
वो हवा थी गुनगुनाती सी, मुझे देखा और मुझमे मिल गयी.
कभी मैं शुन्य तो सहारा है वो, कभी मैं नदी तो किनारा है वो
वो हसी है मेरी, साँसों की आस
मैं उसकी परछाई और वो मेरा विश्वास,
कुछ और भी मिला है उसका साथ पाने से मुझे
शायद कविता की ग़ज़ल भी मेरे संग है हर अफसाने में मेरे
कभी शिखर कभी शेखर कभी शिव का वरदान
हाँ यही है मेरी जिंदगी का "एक अनकहा अनसुना प्यारा सा मुकाम"
Wednesday, December 19, 2012
Wednesday, November 28, 2012
मैं :)
हाँ मैं मिट्टी का तन हूँ, शीशे का मन हूँ,
छुप जाती हूँ सूरज की परछाइयों में, रंग लती हूँ चाँद की अंगराइयों में,
डरती हूँ हर एक रात से, यादें आती है अपनों की हर एक पल की सौगात से,
कुछ पाया है मैंने तो करम है तुम्हारा, पर जो पाना है अभी उसमे सिर्फ "धरम" है हमारा,
कभी में उड़ जाऊ, ऐसा ये मन कहता है
पर क्या करूँ इस दुनिया का डर हमेशा मेरे जहन में रहता है
कहाँ हूँ मै कहाँ तुम हो
एक ही आशा है कभी हमारी राहे "मुस्तके ए मंजिल" हो
दुआ यही है मेरी तेरी परछाइयों में मेरा "मुस्तके ए बिल" हो.
छुप जाती हूँ सूरज की परछाइयों में, रंग लती हूँ चाँद की अंगराइयों में,
डरती हूँ हर एक रात से, यादें आती है अपनों की हर एक पल की सौगात से,
कुछ पाया है मैंने तो करम है तुम्हारा, पर जो पाना है अभी उसमे सिर्फ "धरम" है हमारा,
कभी में उड़ जाऊ, ऐसा ये मन कहता है
पर क्या करूँ इस दुनिया का डर हमेशा मेरे जहन में रहता है
कहाँ हूँ मै कहाँ तुम हो
एक ही आशा है कभी हमारी राहे "मुस्तके ए मंजिल" हो
दुआ यही है मेरी तेरी परछाइयों में मेरा "मुस्तके ए बिल" हो.
Friday, November 16, 2012
कभी खुद को जाना, तो कभी अपनों ने मुझे पहचाना,
गम हुई हु चोरी से कुछ बात में मैं, पर खिल उठी हूँ तुम्हारे साथ में मैं,
चाहत है कुछ अनजाना सा पाने की, पर क्यूँ दरकार है कुछ दीवानी सी,
खुश रहूँ उस बात मैं जो आये तेरे साथ में, ना कुछ पाऊ ना कुछ भूल जाऊ
बस इतनी दुआ है मालिक से, तेरे नज़रो करम के साये में इस "जीवन" का एक एक पल जी पाऊ.
गम हुई हु चोरी से कुछ बात में मैं, पर खिल उठी हूँ तुम्हारे साथ में मैं,
चाहत है कुछ अनजाना सा पाने की, पर क्यूँ दरकार है कुछ दीवानी सी,
खुश रहूँ उस बात मैं जो आये तेरे साथ में, ना कुछ पाऊ ना कुछ भूल जाऊ
बस इतनी दुआ है मालिक से, तेरे नज़रो करम के साये में इस "जीवन" का एक एक पल जी पाऊ.
Wednesday, October 31, 2012
Wednesday, September 19, 2012
वक़्त
वो वक़्त गुजर गया, ये वक़्त भी गुजर जायेगा,
कुछ खो दिया उस वक़्त में, वो शायद ही कभी संभल पायेगा,
कुछ घाव मिले है गहरे, अनजान मैं नहीं,
शायद उसके बाद अब पहचान मैं नहीं,
खोने का गम कम है, पर पाने की चाहत क्यूँ नहीं,
पाना है अभी बहुत कुछ पर उसकी आदत क्यूँ नहीं,
वो वक़्त चला गया, पर उसके जाने पर भी,
मैं कौन हूँ, मेरे होने की आहट क्यूँ नहीं,
दे दो मुझे एक लम्हा फिर से जीने के लिए,
काश वोह वक़्त वापस मिल जाये, जिंदगी के धागे में खुशियों के मोती पिरोने के लिए,
हाँ, वोह वक़्त वापस मिल जाये, मुझे फिर से उस आगोश में गुम होने के लिए.
कुछ खो दिया उस वक़्त में, वो शायद ही कभी संभल पायेगा,
कुछ घाव मिले है गहरे, अनजान मैं नहीं,
शायद उसके बाद अब पहचान मैं नहीं,
खोने का गम कम है, पर पाने की चाहत क्यूँ नहीं,
पाना है अभी बहुत कुछ पर उसकी आदत क्यूँ नहीं,
वो वक़्त चला गया, पर उसके जाने पर भी,
मैं कौन हूँ, मेरे होने की आहट क्यूँ नहीं,
दे दो मुझे एक लम्हा फिर से जीने के लिए,
काश वोह वक़्त वापस मिल जाये, जिंदगी के धागे में खुशियों के मोती पिरोने के लिए,
हाँ, वोह वक़्त वापस मिल जाये, मुझे फिर से उस आगोश में गुम होने के लिए.
Tuesday, September 18, 2012
Life is Full of Papers :)
Paper and paper, every where paper, getting the paper, reading the paper, writing the paper, understanding the paper, teaching the paper and interpreting the paper, thinking of paper and drawing the paper, taking the paper and reviewing the paper, checking the paper and loosing the paper, so many paper and access to all paper, but one paper restricted access and trying to unlock that paper. Now guess "Which Paper" ????
Saturday, September 15, 2012
बातें अभी भी है अनकहीं सी
तू आया, तेरी आहटे मेरे कानो ने सुनी,
तेरी आहटों की मासूमियत मेरे दिल को छु गयी,
तुझसे थोडा सा प्यार थोड़ी सी मोहब्बत हुई,
तेरी प्यार से मेरी जिंदगी फिर नई हुई,
एक एक पल तेरी आगोश में बिताया है.
एक एक लम्हा तेरे संग जिंदगी का नया खट्टा मीठा अनुभव पाया है,
सोचा था वक़्त बहुत है संग जीना का,
पर क्या पता था दो साल बन जायेंगे सुन्दर जैसे नक्काशी पश्मीने का,
आज तू चला तो पता चला, कुछ आहटे हुई है दिल में
कुछ टूट रहा है, तेरे साथ से मेरा संग छूट रहा है,
दिल भी तेरा, मैं भी तेरी, यही आहट है छुपी सी
बहुत बातें हुई है हमारे बीच, पर आज भी लगता है, "हाँ बहुत बातें अभी भी है अनकहीं सी"
:(
तेरी आहटों की मासूमियत मेरे दिल को छु गयी,
तुझसे थोडा सा प्यार थोड़ी सी मोहब्बत हुई,
तेरी प्यार से मेरी जिंदगी फिर नई हुई,
एक एक पल तेरी आगोश में बिताया है.
एक एक लम्हा तेरे संग जिंदगी का नया खट्टा मीठा अनुभव पाया है,
सोचा था वक़्त बहुत है संग जीना का,
पर क्या पता था दो साल बन जायेंगे सुन्दर जैसे नक्काशी पश्मीने का,
आज तू चला तो पता चला, कुछ आहटे हुई है दिल में
कुछ टूट रहा है, तेरे साथ से मेरा संग छूट रहा है,
दिल भी तेरा, मैं भी तेरी, यही आहट है छुपी सी
बहुत बातें हुई है हमारे बीच, पर आज भी लगता है, "हाँ बहुत बातें अभी भी है अनकहीं सी"
:(
Tuesday, September 4, 2012
मैं
मैं बीच रास्ते में खो गयी हूँ, कोई मुझे रास्ता दिखा दे,
मैं मंजिल से दूर हूँ, कोई मुझे मंजिल बता दे,
मैं कभी हवा हूँ, कभी बुलबुला, कोई मुझे मेरी तकदीर बता दे,
बन गयी हूँ कितनो की राजदार, कोई खुद को मेरा राजदार बना दे,
कुछ कहूँ या भूल जाऊं, बस कोई मुझे "मुझसे" मिलवा दे.
मैं मंजिल से दूर हूँ, कोई मुझे मंजिल बता दे,
मैं कभी हवा हूँ, कभी बुलबुला, कोई मुझे मेरी तकदीर बता दे,
बन गयी हूँ कितनो की राजदार, कोई खुद को मेरा राजदार बना दे,
कुछ कहूँ या भूल जाऊं, बस कोई मुझे "मुझसे" मिलवा दे.
Friday, August 31, 2012
कभी उनसे नजदीकिया उनसे मेरी वफ़ा बन गयी
कभी उनसे दूरियां ही मेरी जीने की वजह बन गयी,
सब कुछ बिकता है यहाँ बस मेरे एक इशारे पे,
पर तेरे हाथों की थपथपी मेरी इस दुनिया से जफाह की वजह बन गयी.
कुछ धुंदली सी यादें हैं तेरी बाँहों मैं बितायी हुई,
एक "वजह" की चाह, मुझसे तेरी बाँहों की दूरी बन गयी,
एक तेरा "घर" है जहाँ हर पराया भी अपना लगता है,
और एक मैं हूँ अकेली यहाँ, जहाँ मुझे हर किसी से डर लगता है,
न चाह है खुद की, ना ही रहमते खुदा की,
तेरे साथ की पनाहों मैं मुझे अपना हर सपना सच्चा लगता है,
बात तोह है बहुत शर्मीली सी पर कहने को दिल चाहता है,
"माँ" एक तू ही है जिसके चेहरे में मुझे सच मुच "खुदा का रहम" दिखता है.
कभी उनसे दूरियां ही मेरी जीने की वजह बन गयी,
सब कुछ बिकता है यहाँ बस मेरे एक इशारे पे,
पर तेरे हाथों की थपथपी मेरी इस दुनिया से जफाह की वजह बन गयी.
कुछ धुंदली सी यादें हैं तेरी बाँहों मैं बितायी हुई,
एक "वजह" की चाह, मुझसे तेरी बाँहों की दूरी बन गयी,
एक तेरा "घर" है जहाँ हर पराया भी अपना लगता है,
और एक मैं हूँ अकेली यहाँ, जहाँ मुझे हर किसी से डर लगता है,
न चाह है खुद की, ना ही रहमते खुदा की,
तेरे साथ की पनाहों मैं मुझे अपना हर सपना सच्चा लगता है,
बात तोह है बहुत शर्मीली सी पर कहने को दिल चाहता है,
"माँ" एक तू ही है जिसके चेहरे में मुझे सच मुच "खुदा का रहम" दिखता है.
Saturday, August 25, 2012
उम्मीद
कुछ सुबह खुशियाँ लेकर आती है,
कुछ सुबह चेहरे की परेशनिया बन जाती है,
कुछ सुबह नई उमंग जगाती है,
कुछ सुबह मेरे रंगों को बिखरा जाती है,
पर एक बात जानी है, जो हर सुबह बताती है,
के हर सुबह एक "उम्मीद की किरण" जगाती है,
और रंगों मैं विश्वास भर जाती है.
मुझे हर वक़्त इंतजार है उस सुबह का "जो फिर खुशियों के रंग लाएगी
और मुझे ये बताएगी "शायद मेरी कहानी अब शुरू होने वाली है"
:)
कुछ सुबह चेहरे की परेशनिया बन जाती है,
कुछ सुबह नई उमंग जगाती है,
कुछ सुबह मेरे रंगों को बिखरा जाती है,
पर एक बात जानी है, जो हर सुबह बताती है,
के हर सुबह एक "उम्मीद की किरण" जगाती है,
और रंगों मैं विश्वास भर जाती है.
मुझे हर वक़्त इंतजार है उस सुबह का "जो फिर खुशियों के रंग लाएगी
और मुझे ये बताएगी "शायद मेरी कहानी अब शुरू होने वाली है"
:)
Friday, August 10, 2012
"वक़्त"
कुछ राज़ है पुराने दबे हुए
कुछ पल है जो आने वाले है,
कुछ बातें है याद नहीं है,
कुछ बातें अभी बनने को है
एक मन है पुराने राज़ को जानने का,
एक मन है नयी बातों को पहचानने का,
एक बात खास है के दोनों में एक "वक़्त" समाया है,
ना बीता कल मालूम है, ना आने वाला कल जान पाई हूँ
फिर भी दबी सी कसक है, पुरानी राज़ो को जानने का और हाँ नयी "बातों" को पहचानने का.
इंतजार है, इंतजार है, इंतजार है हाँ "वक़्त" तुम्हारा.
कुछ पल है जो आने वाले है,
कुछ बातें है याद नहीं है,
कुछ बातें अभी बनने को है
एक मन है पुराने राज़ को जानने का,
एक मन है नयी बातों को पहचानने का,
एक बात खास है के दोनों में एक "वक़्त" समाया है,
ना बीता कल मालूम है, ना आने वाला कल जान पाई हूँ
फिर भी दबी सी कसक है, पुरानी राज़ो को जानने का और हाँ नयी "बातों" को पहचानने का.
इंतजार है, इंतजार है, इंतजार है हाँ "वक़्त" तुम्हारा.
Thursday, February 23, 2012
Dekho Ek Bacha Rota Hai!!!
एक छोटा बच्चा रोता है,
मोती से आसूं खोता है,
पुछू तो क्या है कुफ्र हुआ,
एक फूल पे दिल शुन्य हुआ,
दुष्कर वो विस्पंदन हुआ,
जो फूल तोड़ने के सजा बना,
मेरा मन तू विचलित था,
यही सोच के चिंतित था,
फूल बड़ा या फूलों सी मुस्कान
क्या इतना निष्ठुर होता है इंसान!!!
मोती से आसूं खोता है,
पुछू तो क्या है कुफ्र हुआ,
एक फूल पे दिल शुन्य हुआ,
दुष्कर वो विस्पंदन हुआ,
जो फूल तोड़ने के सजा बना,
मेरा मन तू विचलित था,
यही सोच के चिंतित था,
फूल बड़ा या फूलों सी मुस्कान
क्या इतना निष्ठुर होता है इंसान!!!
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