Wednesday, November 28, 2012

मैं :)

हाँ मैं मिट्टी का तन हूँ, शीशे का मन हूँ,
छुप जाती हूँ सूरज की परछाइयों में, रंग लती हूँ चाँद की अंगराइयों में,
डरती हूँ हर एक रात से, यादें आती है अपनों की हर एक पल की सौगात से,
कुछ पाया है मैंने तो करम है तुम्हारा, पर जो पाना है अभी उसमे सिर्फ "धरम" है हमारा,
कभी में उड़ जाऊ, ऐसा ये मन कहता है
पर क्या करूँ इस दुनिया का डर हमेशा मेरे जहन में रहता है
कहाँ हूँ मै कहाँ तुम हो
एक ही आशा है कभी हमारी राहे "मुस्तके ए मंजिल" हो
दुआ यही है मेरी तेरी परछाइयों में मेरा "मुस्तके ए बिल" हो.

Friday, November 16, 2012

कभी खुद को जाना, तो कभी अपनों ने मुझे पहचाना,
गम हुई हु चोरी से कुछ बात में मैं, पर खिल उठी हूँ तुम्हारे साथ में मैं,
चाहत है कुछ अनजाना सा पाने की, पर क्यूँ दरकार है कुछ दीवानी सी,
खुश रहूँ उस बात मैं जो आये तेरे साथ में, ना कुछ पाऊ ना कुछ भूल जाऊ
बस इतनी दुआ है मालिक से, तेरे नज़रो करम के साये में इस "जीवन" का एक एक पल जी पाऊ.