कभी खुद को जाना, तो कभी अपनों ने मुझे पहचाना,
गम हुई हु चोरी से कुछ बात में मैं, पर खिल उठी हूँ तुम्हारे साथ में मैं,
चाहत है कुछ अनजाना सा पाने की, पर क्यूँ दरकार है कुछ दीवानी सी,
खुश रहूँ उस बात मैं जो आये तेरे साथ में, ना कुछ पाऊ ना कुछ भूल जाऊ
बस इतनी दुआ है मालिक से, तेरे नज़रो करम के साये में इस "जीवन" का एक एक पल जी पाऊ.
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