Thursday, June 27, 2013

औरत हूँ मैं

औरत हूँ मैं, देखिये आज कहाँ खडी हूँ मैं,

कहीं मैं फूट तोह पडी पर गर्भ मैं मरी हूँ मैं,
कहीं अगर जन्मी गयी तो कुछ आंसुओं की लड़ी हूँ मैं,

कहीं पिता की परी हूँ तो माता की सखी हूँ मैं
पर फिर जीवन के संघर्ष मैं क्यूँ भाई से पीछे खडी हूँ मैं,

कहीं भाई के साथ समता पे खडी हूँ मैं,
पर समाज के विचारो मैं बेपनाह बदतमीज़ हूँ मैं,

कहीं शिक्षा में आगे निकली तो उनके लिए "किस्मत की धनी हूँ मैं"
हर तरह के पशोपेक्श, उलाहनो और कदम ताल पे पली हूँ मैं

इसी समाज मैं हर वक़्त अपने सम्मान के लिए लड़ी हूँ मैं,
लड़ ली तो "तेज" नहीं तो "बकरे की बलि हूँ मैं"

शादी के लिए एक अनमोल कड़ी हूँ मैं
पर शादी के नाम पर हर दम बिकी हूँ मैं,

मुझे सुन्दर भी होना है, समझदार भी, चुप भी वफादार भी,
नौकर भी, तीमारदार भी, फिर नोटों की मशीन के साथ विदा हुई हूँ मैं

मर्द के साथ जब कदम बढाया तो दो हिस्सों मैं बटी हूँ मैं
आगे निकल गयी तो चरित्रहॆन वरना तेरी नौकर बनी हूँ मैं,

जगह जगह मेरी आबरू को बदनाम करते है,
कभी तेरी आँखों से, कभी उन गुनेहगार बातों से रुदी हूँ मैं,

मैं मर भी जाऊ, तो बस स्वपन की बात रही हूँ मैं,
क्यूँ तेरे समाज मैं हर सांस मरी हूँ मैं,

लज्जा आती है मुझे जब मुझे हर बार रुसवा किया जाता है,
कभी मौत के घाट, कभी आत्मसम्मान को भी मार दिया जाता है,

क्यूँ भूल जाते है बात, आज मैं अनजान ही सही, दुष्टता का पात्र ही सही,
कल तेरी प्यारी बेटी बनी हूँ मैं, हाँ अजन्मी ही सही, पर तेरी राह मैं खडी हूँ मैं,

हाँ औरत बनी हूँ मैं, जिन्दगी के हर मोड़ पे लड़ के आगे बढ़ी हूँ मैं
हाँ औरत बनी हूँ मैं, देखो किस मोड़ पे खडी हूँ मैं.

1 comment:

  1. दिल के नाज़ुक एहसासों से सजी नज़्म.....

    अनु

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